हवा के झोंके ने फिर से पन्नों को सहलाया,
खरीद लाये थे कुछ सवालों का जवाब ढूढ़ने।
मैंने माना कि नुकसान देह है ये सिगरेट...
जो सूख जाये दरिया तो फिर प्यास भी न रहे,
रास्ते पर तो खड़ा हूँ पर चलना भूल गया हूँ।
न जाने उससे मिलने का इरादा कैसा लगता है,
उजालों में चिरागों की अहमियत नहीं होती।
महफ़िल में रह के भी रहे तन्हाइयों में हम,
सुना है कि महफ़िल में वो बेनकाब आते हैं।
वो किताबें भी जवाब माँगती हैं जिन्हें हम,
हुजूर लाज़िमी है महफिलों में बवाल shayari in hindi होना,
जर्रे-जर्रे में वो है और कतरे-कतरे में तुम।
कुछ बदल जाते हैं, कुछ मजबूर हो जाते हैं,
तेरी चिट्ठी जो किताबों में छुपा रखी है।
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